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Adani @ Rath Yatra

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जगन्नाथ का महाप्रसाद – मिट्टी की हांडी, लकड़ी की आग और ईश्वर की इच्छा

पुरी के श्रीजगन्नाथ मंदिर में जब दिन की पहली आरती होती है, तब भगवान के भोग की तैयारी भी शुरू हो जाती है। लेकिन यह कोई साधारण रसोई नहीं — यह है दुनिया की सबसे पवित्र रसोई, जहाँ ईश्वर के लिए भोजन पकाया जाता है, और उस भोजन को ही महाप्रसाद कहा जाता है।

महाप्रसाद, यानी वह भोजन जो भगवान जगन्नाथ को अर्पित होता है, और फिर हज़ारों-लाखों भक्तों तक पहुँचता है। यह न केवल एक धार्मिक परंपरा है, बल्कि भारत की सामुदायिक एकता, परोपकार और श्रद्धा की जीवंत मिसाल भी है।

यह प्रसाद खास इसलिए भी है क्योंकि इसे सदियों पुरानी विधियों से आज भी उसी श्रद्धा से तैयार किया जाता है। यहाँ न आधुनिक मशीनें हैं, न नाप-तौल के उपकरण। केवल मिट्टी की हांडियाँ, लकड़ी की अग्नि और सेवकों का निःस्वार्थ समर्पण।

सात हांडियों को एक-दूसरे के ऊपर रखा जाता है और चूल्हे पर नीचे से जलाया जाता है। चमत्कार यह कि ऊपरी हांडी सबसे पहले पकती है, फिर नीचे की। यह विज्ञान से परे एक भक्ति का रहस्य है, जिसे ईश्वर की इच्छा कहा जाता है।

खिचड़ी, जिसे यहाँ भात कहा जाता है, महाप्रसाद का केंद्र है। चावल, मूँगदाल, देशी घी और हल्के मसालों से तैयार यह भात, स्वाद से अधिक भावना से भरपूर होता है। इसके साथ कढ़ी, साग, मिठाई और कई अन्य व्यंजन भी परोसे जाते हैं — परंतु जो भूमिका भात निभाता है, वह किसी और की नहीं।

यहाँ जात-पात, अमीरी-गरीबी, धर्म या भाषा की दीवारें नहीं हैं। जब महाप्रसाद धरती पर आता है, तो सभी भक्त एक पंक्ति में बैठते हैं राजा हो या रंक, सभी के हाथ एक साथ फैलते हैं। महाप्रसाद केवल भोजन नहीं, एक दर्शन है जो सिखाता है कि भक्ति के आगे हर भेदभाव छोटा है। यह हमें बताता है कि जब भोजन सेवा से बने, तो वह प्रसाद बन जाता है और जब भगवान के लिए बने, तो वह अमृत हो जाता है।

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