
Adani @ Rath Yatra
जानिए जगन्नाथ मंदिर का पौराणिक इतिहास
भारत के चार धामों में से एक पुरी का जगन्नाथ मंदिर न केवल एक अद्भुत स्थापत्य कृति है,
बल्कि इसका पौराणिक इतिहास भी उतना ही रहस्यमयी और रोचक है। यह मंदिर भगवान
श्रीकृष्ण के एक विशेष रूप, ‘जगन्नाथ’ को समर्पित है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस
मंदिर
के पीछे एक गूढ़ कथा छिपी हुई है जो साक्षात भगवान विष्णु, इंद्रद्युम्न राजा,
विश्वकर्मा और
स्वयं ब्रह्मा तक जाती है?
एक सपने से शुरू हुई एक आध्यात्मिक खोज
पुराणों के अनुसार, एक बार मालवा नरेश राजा इंद्रद्युम्न को स्वप्न में भगवान विष्णु ने
दर्शन
दिए और आदेश दिया कि वे नीलमाधव नामक मूर्ति को खोजें और उसका मंदिर बनवाएं। राजा
ने अपने मंत्री विद्यापति को भेजा, जिन्होंने घने जंगलों में स्थित एक वनवासी शबर
(जनजातीय) विष्णु भक्त, विश्ववासु के घर नीलमाधव की मूर्ति देखी। लेकिन वह मूर्ति
अलौकिक
थी और स्वयं श्रीहरि की उपस्थिति का अनुभव देती थी। राजा इंद्रद्युम्न ने नीलमाधव की
मूर्ति
प्राप्त करने की कोशिश की, लेकिन मूर्ति अंतर्ध्यान हो गई। निराश राजा ने भगवान से
प्रार्थना
की, तब उन्हें समुद्र तट पर एक दैवी काष्ठ (दिव्य लकड़ी) प्राप्त हुई, जिसे ‘दरु
ब्रह्म’ कहा गया।
उसी लकड़ी से भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की मूर्तियाँ बनाई जानी
थीं।
विश्वकर्मा बने मूर्तिकार, लेकिन अधूरी रही मूर्तियाँ
कहते हैं कि मूर्ति निर्माण का कार्य भगवान विश्वकर्मा ने लिया, पर शर्त रखी कि जब तक
कार्य
पूर्ण न हो, कोई भीतर झांके नहीं। राजा और रानी ने धैर्य रखा, पर कई दिन बीत जाने के
बाद
रानी की व्याकुलता बढ़ गई। जब दरवाज़ा खोला गया, तो विश्वकर्मा अंतर्ध्यान हो गए और
मूर्तियाँ अधूरी रह गईं—बिना हाथ-पैरों के। लेकिन तभी आकाशवाणी हुई कि यही रूप
‘जगन्नाथ’ कहलाएंगे और भक्तों को साक्षात ईश्वर का अनुभव देंगे।
ब्रह्मा जी का आशीर्वाद और मंदिर की स्थापना
राजा इंद्रद्युम्न ने ब्रह्मा जी को आमंत्रित किया और वर्षों की तपस्या के बाद उन्हें
पृथ्वी पर
बुलाया। ब्रह्मा जी ने मूर्तियों में ‘जीवन तत्व’ यानी ‘ब्रह्म तत्व’ स्थापित किया और
जगन्नाथ को
सृष्टि के संचालनकर्ता के रूप में प्रतिष्ठित किया। तभी से पुरी में यह मंदिर वैष्णव
भक्तों का
सर्वोच्च तीर्थ बन गया।
धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व
जगन्नाथ मंदिर केवल एक पूजा स्थल नहीं, बल्कि एक जीवंत प्रतीक है कि भगवान केवल शरीर
नहीं, भाव में निवास करते हैं। अधूरी मूर्तियाँ यह संदेश देती हैं कि ईश्वर को देखने के
लिए
बाहरी रूप नहीं, बल्कि श्रद्धा की दृष्टि चाहिए। यहाँ हर जाति, हर वर्ग के लोग बिना
भेदभाव
के भगवान का प्रसाद पाते हैं, जो सामाजिक समरसता की मिसाल है। जगन्नाथ मंदिर का
पौराणिक इतिहास ईश्वर की लीला, भक्त की श्रद्धा और ब्रह्मांडीय ऊर्जा का संगम है। यह
स्थान
न केवल तीर्थ है, बल्कि एक जीवंत कथा है जहाँ स्वप्न में ईश्वर मार्ग दिखाते हैं, जहाँ
अधूरी
मूर्तियाँ पूर्ण मानी जाती हैं, और जहाँ आस्था स्वयं इतिहास रचती है। पुरी का यह धाम
सचमुच
वो स्थान है, जहाँ धर्म, अध्यात्म और प्रेम का मिलन होता है।