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Adani @ Rath Yatra

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भगवान जगन्नाथ की आंखो में समाया है भक्तों का संपूर्ण संसार

पुरी के समुद्र किनारे स्थित श्रीजगन्नाथ मंदिर की ऊँची-ऊँची दीवारों से भी ऊँचे हैं भगवान जगन्नाथ के स्वरूप के पीछे छिपे उनके भाव। लेकिन जब कोई पहली बार भगवान जगन्नाथ की मूर्ति देखता है, तो सबसे पहले उसकी नज़र टिकती है उन विशाल, गोल, खुली हुई आँखों पर लेकिन ये आँखें साधारण नहीं हैं। भगवान जगन्नाथ की मूर्ति में आँखें बड़ी हैं, स्पष्ट हैं और विशेष बात यह कि वे झपकती नहीं। ये न तो बंद होती हैं, न उनींदी लगती हैं जैसे दिन-रात जाग रही हों, सब कुछ देख रही हों।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान जगन्नाथ विष्णु के ही रूप हैं। और ये आँखें इस बात का प्रतीक हैं कि भगवान हर समय अपने भक्तों पर दृष्टि रखे हुए हैं। जब भक्त तकलीफ़ में होता है, तो उसे बोलने की ज़रूरत नहीं पड़ती — प्रभु की आँखें उसकी पीड़ा पढ़ लेती हैं।

भौतिक दृष्टिकोण से देखें तो यह एक अनोखी कला का हिस्सा है। परंपरागत शास्त्रीय मूर्तियों में जहाँ आँखें नपी-तुली और मानव जैसे रूप में होती हैं, वहीं जगन्नाथ की आँखें गोल और बड़ी हैं यह संकेत है कि उनकी दृष्टि सीमित नहीं, बल्कि व्यापक है। वे न केवल भक्तों को देखते हैं, बल्कि भविष्य, भावनाएं और भाग्य भी पढ़ लेते हैं।

लोककथाओं में एक कथा प्रसिद्ध है एक बार एक निर्धन वृद्धा, जो कुछ न कह सकी, सिर्फ मंदिर की ओर देखकर रोती रही। उसने कोई पुकार नहीं लगाई, कोई दान नहीं माँगा। और उसी रात, पुजारी को सपने में भगवान ने कहा, "उस स्त्री को महाप्रसाद भेजो, मैं उसके आँसू देख चुका हूँ।"

वो आँखें सब कुछ देखती हैं। जगन्नाथ का अर्थ ही होता है जगत के नाथ। और जब कोई संपूर्ण जगत का स्वामी होता है, तो वह अपनी दृष्टि कभी क्षणभर के लिए भी नहीं हटाता। इसीलिए उनकी आँखें बड़ी हैं, झपकती नहीं — वह प्रतीक हैं जागरूकता, निस्वार्थ प्रेम और करुणा का। जब पुरी में भक्त जब भगवान के सामने खड़े होते हैं, तो कहते हैं, “प्रभु, आप कुछ न बोलिए, आपकी आँखें ही काफी हैं हमें समझने के लिए।” और यही है भगवान जगन्नाथ की बड़ी आँखों की महिमा — एक मौन संवाद, जो हर भक्त की आत्मा से जुड़ जाता है।

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