Adani @ Rath Yatra
रथ पर सवार जगन्नाथ: समता, आस्था और सनातन परंपरा का महापर्व
जब आषाढ़ शुक्ल द्वितीया का दिन आता है, तब समूची पुरी नगरी एक अलौकिक उत्सव में डूब
जाती है। ढोल-नगाड़ों की गूंज, "जय जगन्नाथ" के नारों से गूंजती सड़कें और करोड़ों
श्रद्धालुओं की आंखों में बस एक ही छवि - भगवान जगन्नाथ का रथ।
गुंडिचा यात्रा: मौसी के घर जाते हैं भगवान
पुरी की रथयात्रा को गुंडिचा यात्रा भी कहा जाता है। यह यात्रा प्रतीक है उस भाव की, जब
भगवान अपने जन्मस्थल से अपने मौसी के घर जाते हैं। गुंडिचा मंदिर वह स्थान है, जिसे
भगवान की मौसी का घर माना जाता है। वहां वे सात दिन निवास करते हैं और फिर वापस
श्रीमंदिर लौटते हैं, जिसे बहुदा यात्रा कहा जाता है।
तीन देवता - तीन रथ: हर रथ में छिपा है गूढ़ अर्थ
नंदीघोष (भगवान जगन्नाथ का रथ): 45 फीट ऊँचा, 16 पहिए, रंग लाल-पीला।
तालध्वज (बलभद्र जी का रथ): 44 फीट ऊँचा, 14 पहिए, रंग हरा-लाल।
दर्पदलन (सुभद्रा जी का रथ): 43 फीट ऊँचा, 12 पहिए, रंग काला-लाल।
हर वर्ष रथ नए पेड़ों की लकड़ी से बनाए जाते हैं। निर्माण में फासी, धौरा, सिमली, सहजा,
मही और दारूक नामक विशेष लकड़ियों का प्रयोग होता है। रथों को खींचना केवल परंपरा नहीं,
एक महापुण्य का कार्य माना जाता है।
कृष्णलीला का प्रतीक: ब्रज से द्वारका तक की कथा
रथयात्रा की जड़ें भागवत पुराण और स्कन्द पुराण में मिलती हैं। एक कथा के अनुसार यह
यात्रा भगवान कृष्ण की गोकुल से मथुरा और फिर द्वारका जाने की स्मृति है। यह उनके
सांसारिक उत्तरदायित्व की ओर कदम बढ़ाने की प्रतीकात्मक झांकी है। एक अन्य मान्यता के
अनुसार, भगवान कृष्ण की मृत्यु के बाद उनका दिल, जो नष्ट नहीं हुआ था, वही 'नीलमाधव'
रूप में प्रतिष्ठित हुआ और आगे चलकर वही जगन्नाथ कहलाए। उसी हृदय को निलाचल में एक
काष्ठमूर्ति के रूप में स्थापित किया गया।
सबके देव, सबकी आस्था
रथ यात्रा की सबसे सुंदर विशेषता इसकी समतावादी भावना है। रथ खींचने के लिए किसी जाति,
धर्म या वर्ग की बाध्यता नहीं है। कोई भी व्यक्ति, चाहे वह किसी भी वर्ग से हो, भगवान
का रथ खींच सकता है। यही इसे लोकदेवता की अवधारणा से जोड़ता है।
इतिहास में दर्ज है सम्राटों की आस्था
इतिहास गवाह है कि मुगल बादशाह अकबर के शासनकाल में उनके दरबारी मानसिंह ने भी रथयात्रा
में भाग लिया था। अंग्रेज अधिकारी भी इसकी भव्यता से चकित होते थे। 19वीं सदी के
ब्रिटिश अधिकारी थॉमस मुनरो ने अपने रिपोर्ट में लिखा था कि यह भारत की सबसे भीड़भाड़
और भक्ति से भरी धार्मिक यात्रा है।
भक्ति, ब्रह्म और ब्रह्मांड - सब एक रथ में सवार
पुरी की रथयात्रा सनातन धर्म की जीवंत प्रस्तुति है। इसमें आस्था है, परंपरा है, और वह
भाव भी है जो मनुष्य को ईश्वर से जोड़ता है। जब भक्त रथ की रस्सी पकड़ते हैं, तो वह
केवल लकड़ी नहीं खींच रहे होते, वे अपने पापों को पीछे छोड़कर मोक्ष की ओर कदम बढ़ा रहे
होते हैं।