Logo

Adani @ Rath Yatra

All Stories

भोजन नहीं, प्रेम, समानता और सेवा का प्रतीक है भगवान जगन्नाथ का प्रसाद

सदियों से पुरी की रसोई से उठती धुएँ की रेखाएं केवल पकवान की नहीं, परंपरा की कहानी कहती हैं। यह कोई आम रसोई नहीं — यह वही स्थान है जहाँ भगवान स्वयं रसोइया माने जाते हैं और भात, यानी खिचड़ी, उनके प्रेम का पहला निवाला।

कहते हैं, जब सुबह की पहली किरण श्रीमंदिर की रसोई पर पड़ती है, तब वहाँ का मौन भी मंत्रों की तरह बोलने लगता है। रसोई में प्रवेश करने वाले सेवक जिन्हें यहाँ ‘सुवारा’ कहा जाता है चप्पल उतारकर, मन साफ करके प्रवेश करते हैं। नाप-तौल नहीं, इलेक्ट्रिक चूल्हा नहीं, स्टील के बर्तन नहीं यहाँ मिट्टी के हांडे, लकड़ी की आग और आस्था की आँच ही सब कुछ है और अब आती है खिचड़ी की बारी भात, जो प्रसाद का दिल है। देसी चावल, मूँग दाल, हल्के मसाले, घी और सबसे खास प्रभु के लिए समर्पित भावना। इसे सात-सात हांडों की पिरामिड जैसी रचना में पकाया जाता है। नीचे की हांडी में ऊपर की तुलना में पहले भात पक जाना विज्ञान नहीं, विश्वास है।

भोजन तैयार होता है न आवाज़, न शोर, न होड़ केवल सादगी, संयम और सेवा। यह खिचड़ी जब भगवान जगन्नाथ के सामने रखी जाती है, तो वह सिर्फ भोग नहीं होता, वह एक निमंत्रण होता है पूरी दुनिया के लिए प्रेम से भरपेट होने का।

फिर यह खिचड़ी जब महाप्रसाद बनकर भक्तों तक पहुँचती है, तो किसी को नहीं देखा जाता कि वह कौन है, कहाँ से आया है। न ऊँच-नीच, न जात-पात, न देश-विदेश। सब हाथ पसारते हैं क्योंकि यह भात नहीं, भक्ति का स्वाद है। यह अन्न नहीं, आशीर्वाद है।

यह प्रसाद नहीं, प्रेम की पराकाष्ठा है। पुरी की रसोई हर दिन हमें सिखाती है — जब खाना ईश्वर के लिए बनता है, तब वह केवल पेट नहीं, परमात्मा को भी तृप्त करता है।

All Stories