Adani @ Rath Yatra
सबके नाथ जगन्नाथ - एक अद्भुत पूजा परंपरा की कथा कहानी
हर साल जब पुरी की सड़कों पर रथों के पहिये घूमते हैं, तो केवल लकड़ी के रथ नहीं, आस्था
की लहरें भी उमड़ती हैं। भगवान जगन्नाथ—जिन्हें ‘विश्व के नाथ’ कहा जाता है—की पूजा और
आरती की परंपरा उतनी ही विलक्षण है, जितनी उनकी मूर्ति की आकृति। जगन्नाथ, उनके भाई
बलभद्र और बहन सुभद्रा की पूजा ओडिशा के पुरी शहर के जगन्नाथ मंदिर में होती है। लेकिन
यह केवल एक पूजा स्थल नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक शक्ति केंद्र है, जहाँ हर परंपरा में
कोई
अनोखी कथा छुपी होती है।
यहाँ भगवान की मूर्तियाँ काष्ठ से बनी होती हैं, और हर 12 से 19 साल में इन्हें
‘नवकलेवर’ के
रूप में बदला जाता है। ऐसा माना जाता है कि भगवान स्वयं अपने शरीर को बदलते हैं। यह
पूजा विधि अद्भुत है—बिना किसी कैमरे, बिना किसी दस्तावेजीकरण के—पूर्ण गोपनीयता
और भक्तिभाव से संपन्न होती है। आरती की बात करें, तो यहाँ दीपक जलाकर शंख, घंटी और
मृदंग की ध्वनि के साथ आरती होती है। पुरी की ‘संध्या आरती’ खास होती है, जब सूर्यास्त
के
समय मंदिर में दिव्यता छा जाती है। पुजारी ‘महाआरती’ करते हैं और भक्तजन “जय जगन्नाथ”
के जयकारों से गूंज उठा करते हैं।
जगन्नाथ की पूजा में खास बात यह है कि यह किसी विशेष जाति या वर्ग तक सीमित नहीं।
मंदिर के बाहर रथ यात्रा के दौरान हर कोई, चाहे वह किसी भी धर्म या देश का हो, भगवान
को खींचने वाला बन सकता है। यही तो है जगन्नाथ की महिमा—वह ‘लोकनाथ’ हैं, सबके
देवता।
भगवान को 56 भोग चढ़ाने की परंपरा हो, या रथ यात्रा के पहले ‘स्नान यात्रा’—हर रस्म में
भक्ति की एक नई परिभाषा झलकती है।
जगन्नाथ की पूजा हमें यह सिखाती है कि ईश्वर की अनुभूति मूर्ति में नहीं, भावना में
होती है।
और जब भावना सच्ची हो, तो जगन्नाथ खुद चलकर भक्तों के बीच आते हैं—रथ में सवार होकर,
प्रेम में उतरकर। भगवान जगन्नाथ की पूजा केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं, एक जीवंत
आध्यात्मिक अनुभव है जहाँ आस्था, समर्पण और लोक संस्कृति का अद्भुत संगम होता है।