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Adani @ Rath Yatra

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पुरी: वह भूमि जहाँ श्रीकृष्ण केवल पूजे नहीं बल्कि जीवित हैं

पुरी का नाम लेते ही मन में समुद्र की लहरें, रथ यात्रा की गूंज और भगवान जगन्नाथ की विशाल आंखों वाली मूर्ति उभर आती है। लेकिन इस नगर की विशेषता केवल उसकी आध्यात्मिक आभा में नहीं छिपी, बल्कि इस विश्वास में है कि यहाँ श्रीकृष्ण आज भी जीवित हैं धड़कते हृदय के साथ।

कई तीर्थ ऐसे हैं जहाँ भगवान के मंदिर हैं, पर पुरी एक ऐसा तीर्थ है जिसे “धरती का वैकुंठ” कहा गया है। मान्यता है कि श्रीकृष्ण की मृत्यु के बाद उनका हृदय अग्नि में भी नष्ट नहीं हुआ। पांडवों ने इसे समुद्र में प्रवाहित किया, जो कालांतर में ओडिशा के तट पर एक दिव्य ‘दरु’ (काष्ठ) के रूप में प्रकट हुआ। राजा इंद्रद्युम्न को स्वप्न में यह आदेश मिला कि वे उसी लकड़ी से भगवान की मूर्तियाँ बनवाएं।

और जब जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियाँ बनीं, तो उनमें वही अभिनाशी हृदय प्रतिष्ठित किया गया। यही कारण है कि भक्त मानते हैं, भगवान जगन्नाथ की मूर्ति केवल पत्थर की नहीं है—उसमें श्रीकृष्ण की जीवंत उपस्थिति है।

पुरी का यह मंदिर कोई आम मंदिर नहीं। इसके नियम भी आम नहीं हैं। यहाँ का भोग, जिसे 'महाप्रसाद' कहा जाता है, वह स्वयं भगवान द्वारा ग्रहण किया हुआ माना जाता है। हर दिन हजारों भक्तों को यह भोग बिना किसी कमी या अतिरिक्तता के मिल जाता है—भले ही संख्या बदल जाए, मात्रा सटीक रहती है। विज्ञान भी इसे आज तक नहीं समझ पाया।

मंदिर का शिखर आकाश को चीरता है, पर उसकी छाया धरती पर कभी नहीं पड़ती। और मंदिर की मुख्य ध्वजा हवा के विपरीत दिशा में लहराती है, मानो यह संकेत देती हो कि यह स्थान इस पृथ्वी के सामान्य नियमों से परे है।

हर वर्ष रथ यात्रा में जब भगवान अपने रथ पर आरूढ़ होकर नगर भ्रमण के लिए निकलते हैं, तब सड़कों पर लाखों लोग उमड़ पड़ते हैं। ऐसा लगता है मानो भगवान स्वयं अपने भक्तों से मिलने चले आए हों। यह पर्व केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि उस दिव्यता की घोषणा है, जिसमें देवता और मनुष्य के बीच की दीवारें मिट जाती हैं।

पुरी वह स्थान है, जहां धर्म दर्शन से आगे बढ़कर जीवित अनुभव बन जाता है। यह मंदिर उन श्रद्धालुओं के लिए आश्रय है, जो केवल पूजा नहीं, भगवान से संवाद करना चाहते हैं—उनकी धड़कनों को सुनना चाहते हैं।

पुरी आने वाला हर व्यक्ति यहाँ कुछ छोड़ जाता है—कभी अपनी पीड़ा, कभी पाप, कभी अहंकार और कुछ पा जाता है जो जीवन भर उसके साथ रहता है, एक जीवंत, धड़कता हुआ अनुभव। यही पुरी की सबसे बड़ी विशेषता है यहाँ भगवान केवल पूजे नहीं जाते, वे जीते हैं, धड़कते हैं, और अपने भक्तों को सुनते हैं। अगर आप कभी सोचें कि भगवान आज भी कहीं जीवित हैं, तो पुरी की ओर रुख करिए। वहाँ रथ की ध्वनि में, शंख की गूंज में, और मंदिर की दीवारों में एक हृदय आज भी धड़कता है श्रीकृष्ण का हृदय।

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