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Adani @ Rath Yatra

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जगन्नाथ मंदिर के रहस्य जिससे हैरान है आज का विज्ञान

भारत की धरती पर कई मंदिर हैं जो अपनी भव्यता और पौराणिकता के लिए प्रसिद्ध हैं, लेकिन ओडिशा के पुरी स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर की बात ही कुछ और है। यह सिर्फ एक आस्था का केंद्र नहीं, बल्कि रहस्यों की भूमि है। ऐसे रहस्य जो हजारों साल बाद भी वैज्ञानिकों और तर्कवादियों को जवाब नहीं दे सके हैं। यह मंदिर मानो दिव्य चमत्कारों का संगम हो, जहां हर पत्थर एक कहानी कहता है और हर कोना किसी रहस्य को अपने भीतर समेटे हुए है।

सबसे पहला और सबसे प्रसिद्ध रहस्य है मंदिर के शिखर की छाया का न दिखाई देना। आमतौर पर जब सूर्य प्रकाश में कोई भी विशाल संरचना खड़ी होती है, तो उसकी परछाईं ज़मीन पर पड़ती है। लेकिन पुरी का जगन्नाथ मंदिर इस नियम को चुनौती देता है। दिन के किसी भी समय मंदिर की छाया ज़मीन पर नहीं दिखाई देती। इसे लेकर कई वैज्ञानिक शोध हो चुके हैं, लेकिन कोई स्पष्ट उत्तर नहीं मिला। पौराणिक मान्यता कहती है कि यह भगवान विष्णु की ‘माया’ है, जो इस भूमि पर कोई परछाईं नहीं पड़ने देती, ताकि उनका रूप ‘अव्यक्त’ और ‘अद्वितीय’ बना रहे।

दूसरा रहस्य है मंदिर के ऊपर लहराता ध्वज। आमतौर पर हवा जिस दिशा में चलती है, झंडा भी उसी दिशा में लहराता है। लेकिन जगन्नाथ मंदिर का ध्वज हवा के विपरीत दिशा में लहरता है। यह बात देखने वालों को चौंका देती है। माना जाता है कि यह संकेत है कि जगन्नाथ केवल भौतिक नियमों से नहीं चलते, वे ‘दिशा’ बदल सकते हैं। वे जीवन की उन संभावनाओं के स्वामी हैं जो आम समझ से परे हैं। इस झंडे को हर दिन एक पुजारी बिना किसी सहारे के मंदिर के शिखर पर चढ़कर बदलता है, और यह परंपरा सदियों से चल रही है। स्थानीय मान्यता है कि जिस दिन यह ध्वज नहीं बदला गया, उस दिन मंदिर बंद हो जाएगा और आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ।

तीसरा रहस्य मंदिर की तीसरी सीढ़ी से जुड़ा है। पुरी मंदिर में प्रवेश करने के लिए 22 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं, जिनमें से तीसरी सीढ़ी विशेष मानी जाती है। मान्यता है कि इस सीढ़ी पर भगवान विष्णु का निवास होता है और जो भी यहां सच्चे मन से प्रार्थना करता है, उसकी मनोकामना पूरी होती है। भक्त जब मंदिर में प्रवेश करते हैं, तो तीसरी सीढ़ी पर सिर टेकना नहीं भूलते। यह भी कहा जाता है कि इसी सीढ़ी पर भगवान चैतन्य महाप्रभु को श्रीकृष्ण का साक्षात दर्शन हुआ था, जहां वे भावविभोर होकर नाच उठे थे।

इन रहस्यों के पीछे केवल रोमांच नहीं, बल्कि गहरे पौराणिक और दार्शनिक संकेत हैं। यह मंदिर बताता है कि ईश्वर का स्वरूप केवल मूर्ति में नहीं, उनके आसपास के वातावरण में, उनके स्पंदन में और उनकी ‘लीला’ में छिपा है। यह मंदिर केवल भौतिक वास्तु नहीं, एक जीवित चेतना है — जो देखती है, सुनती है और उत्तर भी देती है, भले ही वो उत्तर शब्दों में न हो।

पुरी का जगन्नाथ मंदिर हर उस व्यक्ति के लिए एक चुनौती है जो ईश्वर को केवल तर्क और विज्ञान से समझना चाहता है। यहां आकर लगता है कि कुछ चीज़ें विश्वास से ही समझी जा सकती हैं। यह मंदिर न केवल भगवान का घर है, बल्कि रहस्यों का खुला ग्रंथ है — जो हर दर्शन में कुछ नया कहता है।

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