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Adani @ Rath Yatra

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भगवान जगन्नाथ की बड़ी आंखें: एक रहस्य, एक दर्शन

पुरी के जगन्नाथ मंदिर में जब कोई पहली बार भगवान के दर्शन करता है, तो सबसे पहले जो बात ध्यान खींचती है — वह हैं उनकी बड़ी, गोल, खुली आंखें। यह कोई सामान्य मूर्ति नहीं है। न पलकें हैं, न आंखों की कोई सजावट, फिर भी इन आंखों में ऐसा आकर्षण है कि भक्त थम सा जाता है। आखिर क्या रहस्य है इन आंखों का? क्यों भगवान जगन्नाथ की आंखें इतनी बड़ी बनाई गईं हैं? इस प्रतीक के पीछे कई परतें हैं, पौराणिक, दार्शनिक और सामाजिक।

सबसे पहली और गूढ़ मान्यता कहती है कि भगवान की ये विशाल आंखें उनके ज्ञान और बोध की गहराई को दर्शाती हैं। जैसे सूर्य सबको समान रूप से प्रकाशित करता है, वैसे ही भगवान की दृष्टि सब पर समान रहती है — बिना रुके, बिना थमे। उनकी आंखें हमेशा खुली रहती हैं, क्योंकि वे दिन-रात हर जीव की पीड़ा, आशा, प्रयास और कर्म को देख रहे हैं। भागवत पुराण में वर्णन आता है कि भगवान विष्णु जब ब्रह्मांड का संचालन करते हैं, तब उन्हें हर क्षण सब कुछ देखना होता है। न कोई पल छुटे, न कोई प्राणी। उसी अवधारणा का भौतिक रूप हैं ये बड़ी, अचल, ध्यानमग्न आंखें।

भगवान जगन्नाथ, भगवान श्रीकृष्ण का ही रूप माने जाते हैं। महाभारत में एक प्रसंग आता है जब द्रौपदी का चीरहरण होता है और पूरी सभा मौन है। उस समय द्रौपदी आंखें बंद कर भगवान कृष्ण को पुकारती है। कृष्ण दूर द्वारका में होते हुए भी उसकी पुकार सुन लेते हैं और चीर बढ़ा देते हैं। यहां एक रहस्य जुड़ा है: जब द्रौपदी पुकार रही थी, कृष्ण की आंखें बंद नहीं थीं। वे सब देख रहे थे, सब जान रहे थे। यह दृष्टि ही उन्हें 'जगन्नाथ' बनाती है — जो केवल नाथ नहीं, 'साक्षी' भी हैं।

पुरी की रथयात्रा का एक दिलचस्प पहलू यह है कि भगवान जगन्नाथ हर साल मंदिर से बाहर आते हैं और आम जनता के बीच जाते हैं। इसे ‘गुंडिचा यात्रा’ कहा जाता है। जब वे अपने रथ पर बैठते हैं, तो उनकी वही बड़ी आंखें पूरे जनसैलाब को देखती हैं। ऐसा प्रतीत होता है जैसे वे हर भक्त को व्यक्तिगत रूप से निहार रहे हों। यही आंखें उन्हें आम देवताओं से अलग बनाती हैं। जहां अन्य देव मूर्तियों की आंखें छोटी या प्रतीकात्मक होती हैं, वहीं जगन्नाथ की आंखें भक्त से एक जीवंत संबंध बनाती हैं।

कुछ पौराणिक आख्यान यह भी कहते हैं कि भगवान जगन्नाथ की मूर्ति अधूरी जानबूझकर रखी गई है। उनके हाथ छोटे हैं, पैर नहीं हैं और आंखें बड़ी हैं। इसे ‘दिव्य अपूर्णता’ कहा गया है। इसका संदेश स्पष्ट है — ईश्वर पूर्णता की मूर्ति नहीं, संवेदना का स्रोत हैं। जब शरीर सीमित हो, तब दृष्टि ही सबसे बड़ा साधन होती है। इसलिए भगवान की आंखें इस बात का भी प्रतीक हैं कि जो देख सकता है, वही सह सकता है, और जो सह सकता है, वही सबका साथ दे सकता है।

भगवान जगन्नाथ की बड़ी आंखें कोई मूर्तिकार की कल्पना मात्र नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक दर्शन हैं। वे हमें याद दिलाती हैं कि ईश्वर हर समय जागरूक है, साक्षी है, और हमारी हर क्रिया का साक्षी है। वे केवल मंदिर में बंद भगवान नहीं हैं, बल्कि हमारे साथ चलने वाले, हमें देखने वाले, हमें समझने वाले 'जग के नाथ' हैं। इन आंखों में करुणा है, चेतना है और चरित्र है। यही भगवान जगन्नाथ की आंखों का असली रहस्य है।

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