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Adani @ Rath Yatra

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पुरी: धरती का वैकुंठ और भगवान जगन्नाथ का शाश्वत निवास

पुराणों में एक ऐसी नगरी का वर्णन है, जहां हर सांस में दिव्यता है, हर कण में भक्ति की सुगंध रची-बसी है—वह नगरी है ‘पुरी’ और इसे धरती का वैकुंठ कहा गया है, और इसके मूल में बसे हैं भगवान जगन्नाथ, जिन्होंने स्वयं इस स्थान को अपना शाश्वत निवास बनाया। पुरातन कथाएं और गूढ़ रहस्य इसे केवल एक तीर्थ नहीं, बल्कि आत्मा की यात्रा का केंद्र बनाते हैं।

पुराणों में पुरी का महत्व
स्कंद पुराण, ब्रह्म पुराण और पद्म पुराण जैसे ग्रंथों में पुरी क्षेत्र को ‘श्रीक्षेत्र’ कहा गया है, जो चार धामों में प्रमुख माना गया है। मान्यता है कि जब सृष्टि की रचना हुई, तब भगवान विष्णु ने चार स्थानों पर अपने चार स्वरूपों की स्थापना की—बद्रीनाथ में ध्यान रूप, द्वारका में लीला रूप, रामेश्वरम में सेवा रूप और पुरी में रक्षक रूप में।

पुरी ही वह भूमि है, जहां भगवान विष्णु ने 'नीलमाधव' के रूप में स्वयं को प्रकटीकृत किया था। एक पुरातन कथा के अनुसार, मालवा के राजा इंद्रद्युम्न को नीलमाधव के दर्शन की प्रबल इच्छा हुई। किंतु नीलमाधव अदृश्य हो गए और तभी राजा को स्वप्न में आदेश मिला कि वे समुद्र तट पर एक दिव्य काष्ठ से भगवान की मूर्ति स्थापित करें।

जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की दिव्यता
भगवान जगन्नाथ की मूर्ति एक रहस्य है, जिसमें उनके नेत्र विशाल हैं लेकिन हाथ-पैर अधूरे प्रतीत होते हैं। यह अधूरापन ही उनकी पूर्णता का संकेत है। मान्यता है कि स्वयं विश्वकर्मा ने इन मूर्तियों को गुप्त रूप से गढ़ा, लेकिन अधूरी मूर्तियों को देखने के कारण वे अदृश्य हो गए और मूर्तियाँ वैसी ही रह गईं।

जगन्नाथ के साथ बलभद्र और सुभद्रा का स्वरूप वैष्णव, शैव और शाक्त—तीनों धाराओं का समन्वय है। यही कारण है कि पुरी की रथ यात्रा को विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक उत्सव माना जाता है, जिसमें भगवान अपने भक्तों के पास स्वयं पधारते हैं।

पुरी और ब्रह्माण्डीय रहस्य
पुरी के जगन्नाथ मंदिर में कई रहस्य आज भी वैज्ञानिकों को चकित करते हैं। जैसे, मंदिर के मुख्य शिखर की छाया दिन में कभी भी भूमि पर नहीं पड़ती। समुद्र के समीप स्थित होते हुए भी मंदिर के अंदर समुद्र की ध्वनि सुनाई नहीं देती। और सबसे चौंकाने वाली बात—हर 12 वर्षों में भगवान जगन्नाथ का ‘नवकलेवर’ होता है, जिसमें एक विशेष ‘दर्शन’ वृक्ष से नई मूर्तियाँ बनाई जाती हैं।

यह प्रक्रिया इतनी रहस्यमयी और पवित्र होती है कि मूर्तियों में ‘ब्रह्म तत्व’ का संचार केवल एक विशेष पुजारी ही कर सकता है, और यह तत्व क्या है, यह आज भी एक रहस्य बना हुआ है।

जीवन और मोक्ष का संगम
यह नगरी केवल एक तीर्थ स्थल नहीं, आत्मा के लिए वैकुंठ द्वार है। मान्यता है कि जो भक्त पुरी में भगवान जगन्नाथ का एक बार भी दर्शन कर लेता है, उसे पुनर्जन्म नहीं लेना पड़ता। पुरी में मृत्यु भी मोक्षदायिनी मानी जाती है। यही कारण है कि असंख्य साधु-संत, वैष्णव भक्त और तीर्थयात्री यहाँ जीवन के अंतिम पड़ाव तक ठहरते हैं। पुरी एक शहर नहीं, एक चेतना है। यह वह स्थल है जहां देवता स्वयं मनुष्य रूप में अवतरित होते हैं, भक्तों से मिलते हैं और उन्हें मोक्ष का मार्ग दिखाते हैं। पुरी की रेत में, समुद्र की लहरों में और रथ यात्रा के रथों की गूंज में जो दिव्यता है, वह शायद किसी अन्य तीर्थ में नहीं। इसीलिए इसे धरती का वैकुंठ कहा गया है—जहां भगवान केवल पूजे नहीं जाते, बल्कि जीए जाते हैं।

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