Adani @ Rath Yatra
यमराज की सीढ़ियाँ: जगन्नाथ मंदिर का रहस्यमय द्वार
भारत की धरोहरों में कुछ स्थल ऐसे होते हैं, जो सिर्फ ईंट-पत्थरों से नहीं, बल्कि आस्था, रहस्य
और दिव्यता से बने होते हैं। ओडिशा के पुरी में स्थित श्रीजगन्नाथ मंदिर ऐसा ही एक स्थान है
— एक मंदिर नहीं, बल्कि साक्षात ईश्वर की अनुभूति। पर इस मंदिर की भव्यता के बीच एक
रहस्य ऐसा भी है, जिसे जानकर आपकी श्रद्धा और जिज्ञासा दोनों जाग उठेंगी। यह रहस्य है —
“यमराज की सीढ़ियाँ”।
जगन्नाथ मंदिर से कैसे जुड़े यमराज
यमराज — मृत्यु के देवता, धर्म के प्रतीक, जो जीवन के बाद आत्मा को उसके कर्मों के अनुसार
मार्ग दिखाते हैं। पर क्या आपने कभी सोचा है कि यमराज, जो आमतौर पर परलोक से जुड़े
माने जाते हैं, वे इस धरती पर किसी स्थान पर वास्तव में वास करते हैं?
पुरी के श्रीजगन्नाथ मंदिर में यह मान्यता है कि मंदिर के मुख्य प्रवेशद्वार "सिंहद्वार" की 22
सीढ़ियों पर यमराज स्वयं विराजमान हैं। इन्हें “यमराज की सीढ़ियाँ” कहा जाता है। यही कारण
है कि इन सीढ़ियों पर कोई भी श्रद्धालु सीधा पाँव नहीं रखता। लोग या तो उन्हें छूकर सिर
झुकाते हैं, या किनारे से धीरे-धीरे कदम रखते हैं।
पौराणिक कथा जो इन सीढ़ियों को बनाती है विशिष्ट
कहते हैं, जब भगवान विष्णु ने यमराज से पूछा कि वे पृथ्वी पर किस स्थान को अपना
प्रतिनिधि स्थल बनाना चाहेंगे, तो यमराज ने वह स्थान माँगा, जहाँ धर्म, मोक्ष और कर्म तीनों
का संगम हो। भगवान ने तब श्रीजगन्नाथ मंदिर के सिंहद्वार की इन 22 सीढ़ियों को उनका
निवास घोषित किया।
इन सीढ़ियों की संख्या भी प्रतीकात्मक है, 22 यानि जीवन के 22 मार्ग, 22 संस्कार, आत्मा की
यात्रा के 22 चरण।
तीर्थयात्रा नहीं, आत्मा की यात्रा है ये
जब कोई श्रद्धालु मंदिर में प्रवेश करता है, तो वह केवल एक पवित्र स्थल में नहीं जा रहा होता,
वह स्वयं के भीतर यात्रा कर रहा होता है। और यमराज की ये सीढ़ियाँ उस यात्रा का पहला
पड़ाव हैं।
भक्त इन्हें छूकर, प्रणाम करके और ध्यानपूर्वक पार करते हैं। कुछ लोग एक-एक सीढ़ी पर
रुककर अपने पापों का प्रायश्चित करते हैं, तो कुछ इन पर बैठकर “ओम् नमो भगवते
वासुदेवाय” का जाप करते हैं।
यह अनूठी परंपरा दर्शाती है कि मृत्यु को भय नहीं, बल्कि सम्मान की दृष्टि से देखा गया है। यहाँ
यमराज रक्षक हैं, दंडदाता नहीं।
एक दिव्य अनुभव
जिन्होंने श्रीजगन्नाथ मंदिर में इन सीढ़ियों के पास कुछ पल बिताए हैं, वे बताते हैं कि वहां एक
अलौकिक ऊर्जा महसूस होती है मानो समय थम गया हो, और कोई अदृश्य शक्ति आपके भीतर
झाँक रही हो।
इन सीढ़ियों पर पाँव रखने से डर नहीं लगता, बल्कि आत्मबोध होता है जैसे कि जीवन
क्षणभंगुर है, और मोक्ष की ओर जाने वाला रास्ता इन्हीं चरणों से होकर जाता है।
आस्था और वास्तु का मेल
स्थापत्य दृष्टि से भी ये सीढ़ियाँ अद्वितीय हैं — सुंदर नक्काशी, शिलालेख और प्रतीक जो धर्म
और प्रकृति के संतुलन को दर्शाते हैं। पर असली शक्ति तो उस विश्वास में है, जो सदियों से इन
सीढ़ियों को पत्थर से प्रतीक में बदल देता है।
जहाँ मृत्यु भी मोक्ष का द्वार बन जाए
यमराज की सीढ़ियाँ सिर्फ एक पौराणिक कथा नहीं, बल्कि भारतीय चिंतन की गहराई का
प्रतीक हैं। यहाँ मृत्यु कोई अंत नहीं, बल्कि एक नई यात्रा की शुरुआत है।
जब अगली बार आप पुरी जाएँ, तो इन सीढ़ियों के सामने रुकिए, उन्हें प्रणाम कीजिए, और
महसूस कीजिए कि यमराज केवल मृत्यु के देवता नहीं, बल्कि धर्म के रक्षक और मोक्ष के
द्वारपाल हैं। ये सीढ़ियाँ नहीं, जीवन और परलोक के बीच की सबसे रहस्यमयी डोरी हैं।