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Adani @ Rath Yatra

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कल्पबता : जगन्नाथ मंदिर परिसर का दिव्य वृक्ष

पुरी स्थित श्रीजगन्नाथ मंदिर भारतीय संस्कृति और आस्था का एक भव्य प्रतीक है। यह न केवल भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की भक्ति का केंद्र है, बल्कि इसके परिसर में मौजूद एक विशेष वृक्ष – कल्पबता – श्रद्धालुओं के लिए एक अलौकिक आस्था का केंद्र बन चुका है। यह वृक्ष एक बरगद (वटवृक्ष) है, जिसे कल्पवृक्ष या इच्छापूर्ति करने वाला वृक्ष माना जाता है। इस वृक्ष की महत्ता केवल इसके 500 सालों से अधिक पुराने अस्तित्व में नहीं, बल्कि इसके पौराणिक और आध्यात्मिक महत्व में भी है।

कल्पवृक्ष का पौराणिक संदर्भ
हिंदू धर्मग्रंथों में कल्पवृक्ष का उल्लेख स्वर्गलोक के दिव्य वृक्ष के रूप में होता है। यह वृक्ष देवताओं को उनकी इच्छानुसार फल, फूल और सुख-समृद्धि प्रदान करता है। ऐसा कहा जाता है कि यह वृक्ष समुद्र मंथन के समय उत्पन्न हुआ था, और इंद्रदेव ने इसे अपने स्वर्गीय उपवन में लगाया। भारतीय संस्कृति में बरगद का वृक्ष विशेष रूप से पूजनीय है। इसे ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक माना जाता है। इसकी जड़ें ब्रह्मा, तना विष्णु और शाखाएँ शिव का प्रतिनिधित्व करती हैं। इसी कारण वटवृक्ष को जीवन, ज्ञान और स्थायित्व का प्रतीक भी कहा जाता है।

पुरी के कल्पबता का विशेष स्थान
पुरी के श्रीजगन्नाथ मंदिर परिसर में स्थित यह वटवृक्ष कल्पबता के रूप में प्रसिद्ध है। लोक मान्यता है कि यह वही कल्पवृक्ष है जो भगवान विष्णु के अवतारों से जुड़ा है और जिसे पृथ्वी पर मनुष्यों के कल्याण के लिए स्थानांतरित किया गया। माना जाता है कि इस वृक्ष के नीचे तपस्या करने से व्यक्ति की मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।

श्रद्धालु इस वृक्ष की परिक्रमा करते हैं, उसके नीचे दीप जलाते हैं, और मन ही मन अपनी इच्छाओं की अभिव्यक्ति करते हैं। यह प्रथा बिल्कुल वैसी ही है जैसी पौराणिक काल में देवता कल्पवृक्ष के समक्ष प्रार्थना करते थे।

संन्यासियों और साधकों का ध्यान स्थल
इतिहासकारों और संत साहित्य के अनुसार, कई वैष्णव संतों और साधकों ने इस वृक्ष के नीचे साधना की है। चैतन्य महाप्रभु, जिनकी पुरी यात्रा ऐतिहासिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है, उन्होंने भी इस वृक्ष के समीप ध्यान किया था। ऐसी मान्यता है कि उन्होंने भगवान जगन्नाथ के दर्शन के बाद यहीं आत्मलीन अवस्था प्राप्त की थी।

आध्यात्मिक मनोविज्ञान और आस्था
कल्पबता का महत्व केवल पौराणिक संदर्भ तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे मनोविज्ञान से भी गहराई से जुड़ा है। जब कोई श्रद्धालु इस वृक्ष के नीचे खड़ा होकर अपनी प्रार्थना करता है, तो वह स्वयं को ब्रह्मांड की शक्तियों से जुड़ा हुआ महसूस करता है। यह जुड़ाव व्यक्ति को आंतरिक बल देता है, और यही विश्वास उसे जीवन की कठिन परिस्थितियों से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है।

आज भी जीवित आस्था का प्रतीक
आज, जब आधुनिकता और भौतिकता के बीच आस्था की भाषा बदल रही है, कल्पबता आज भी उसी श्रद्धा और ऊर्जा के साथ खड़ा है। वह न केवल एक वृक्ष है, बल्कि हजारों भक्तों की प्रार्थनाओं का गवाह, साधकों की साधना का साथी और एक पौराणिक कथा का जीवित प्रतीक है। श्रीजगन्नाथ मंदिर का कल्पबता वृक्ष हमें यह याद दिलाता है कि भारत की धरती पर पौराणिकता केवल कहानी नहीं, अनुभव है। यह वृक्ष हमें सिखाता है कि प्रकृति भी ईश्वर का रूप हो सकती है, और एक वृक्ष भी हमारे जीवन की दिशा बदल सकता है यदि हम उसमें विश्वास करें। यही तो है आस्था का चमत्कार।

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