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Adani @ Rath Yatra

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पुरी का रहस्यमयी लोकनाथ मंदिर: जहाँ राम ने शिव को लोकों का नाथ बनाया

पुरी नगरी को लेकर आम जनमानस की पहली स्मृति भगवान जगन्नाथ, रथयात्रा और समुद्र किनारे स्थित विशाल मंदिर की होती है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इस पवित्र तीर्थस्थल में एक और दिव्य शक्ति का वास है। भगवान शिव का लोकनाथ रूप, जो न केवल रहस्यमय है, बल्कि रामायण काल से जुड़ी गहन पौराणिक कहानी भी समेटे हुए है।

मान्यता है कि जब भगवान राम रावण वध के लिए समुद्र पार करने की योजना बना रहे थे, तब उन्हें लगा कि धर्मयुद्ध में विजय के लिए शिव की कृपा अनिवार्य है। उन्होंने अपने गुरु वशिष्ठ से सलाह ली। गुरु वशिष्ठ ने उन्हें पुरी जाकर शिवलिंग की स्थापना करने की सलाह दी — एक ऐसी भूमि, जहाँ समुद्र का साक्षात्कार हो और शांति का वास हो।

श्रीराम अपने कुछ साथियों के साथ पुरी पहुँचे। वहाँ उन्होंने समुद्र तट के समीप एक शांत स्थान पर कठोर तपस्या आरंभ की। कई दिनों तक व्रत, ध्यान और शिव मंत्रों का जाप करते हुए श्रीराम केवल एक ही इच्छा से तप कर रहे थे — भगवान शिव स्वयं प्रकट हों और उन्हें धर्मयुद्ध के लिए आशीर्वाद दें।

पौराणिक कथा के अनुसार, श्रीराम की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और बोले, “राम, तुम्हारा उद्देश्य धर्म की रक्षा है। यह भूमि अब मेरी भी होगी। मैं यहाँ लोकों के नाथ — लोकनाथ — के रूप में वास करूंगा।” श्रीराम ने उसी स्थान पर एक दिव्य शिवलिंग की स्थापना की, जिसे आज हम पुरी का लोकनाथ मंदिर कहते हैं।

यह शिवलिंग अपने आप में अद्भुत है। पूरे वर्ष यह जल में डूबा रहता है। इस जल का कोई स्पष्ट स्रोत नहीं है, पर भक्त इसे गंगाजल के समान मानते हैं — मानो स्वयं गंगा यहाँ आकर भगवान शिव का नित्य अभिषेक करती हों। वर्ष में केवल एक दिन — श्रावण महीने की शुक्ल चतुर्दशी को — यह शिवलिंग जल से बाहर निकाला जाता है और भक्तों को साक्षात दर्शन होते हैं। मंदिर के मुख्य पुजारी पंडित हरिहरनाथ मिश्र दैनिक भास्कर को बताते हैं, “लोकनाथ मंदिर की शक्ति मौन है। यहाँ आने वाले लोग केवल दर्शन नहीं करते, वे एक गहरी आध्यात्मिक ऊर्जा को महसूस करते हैं। ये वही शिव हैं, जिनकी शरण राम ने ली थी।” यह मंदिर रहस्य, श्रद्धा और गहराई का अनोखा संगम है। आम तीर्थों की तरह यहाँ कोई भव्य शिल्प नहीं, कोई सोने की छत नहीं, लेकिन जो है, वह है दिव्यता — अनुभूति की।

लोग मानते है कि इस मंदिर में सच्चे मन से माँगी गई मुरादें पूरी होती हैं। कई श्रद्धालुओं ने असाध्य रोगों से मुक्ति, जीवन में दिशा और मानसिक शांति मिलने के अनुभव यहाँ साझा किए हैं। पुरी को यूँ तो जगन्नाथधाम कहा जाता है, पर यह एकमात्र ऐसा तीर्थ है जहाँ विष्णु और शिव दोनों इतने निकट विराजते हैं। एक ओर जगन्नाथ जी रथ पर विराजमान होकर जनमानस से मिलते हैं, वहीं दूसरी ओर लोकनाथ जल में समाधिस्थ रहकर मौन शक्ति का प्रतीक बनते हैं। यह मंदिर उन लोगों के लिए है जो दिखावे से नहीं, आत्मिक गहराई से जुड़ना चाहते हैं। यह याद दिलाता है कि राम ने भी शिव की शरण ली थी, और भगवान शिव ने भी राम को अपना परम भक्त माना था।

पुरी का लोकनाथ मंदिर केवल शिवालय नहीं, वह स्थान है जहाँ समय ठहर जाता है, श्रद्धा सजीव हो जाती है और मन कहता है यहाँ कुछ है, जो किसी ग्रंथ से नहीं, केवल अनुभव से जाना जा सकता है।"

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