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Adani @ Rath Yatra

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भगवान जगन्नाथ की बाईस सीढ़ियां और मोक्ष का रहस्य

पुरी के जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश करने से पहले श्रद्धालु जब 22 सीढ़ियों को चढ़ते हैं, तो वे केवल पत्थर की सतह पर पांव नहीं रखते — वे आत्मा के परिशोधन की एक अदृश्य यात्रा पर अग्रसर होते हैं। इन सीढ़ियों को ‘बैसी पहाचा’ कहा जाता है, जिसका अर्थ है ‘बाईस सीढ़ियां’। लेकिन ये संख्या मात्र गणित नहीं है यह जीवन और अध्यात्म के गहरे रहस्यों को समेटे हुए है।

बाईस सीढ़ियां और मानव जीवन की बाईस बुराइयां
पुराणों और स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, ये 22 सीढ़ियां मानव जीवन की बाईस कमजोरियों या दोषों की प्रतीक हैं — जैसे काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या, द्वेष, आलस्य, हिंसा, छल, असत्य, माया, मोहवृति, तृष्णा, अविश्वास, अपवित्रता, असंयम, लोभ की पुनरावृत्ति, मोह की पुनरावृत्ति, आत्मविस्मृति, विवेकहीनता और अज्ञान। मंदिर में प्रवेश से पहले इन दोषों को मानसिक रूप से त्यागना आवश्यक माना गया है, ताकि श्रद्धालु शुद्ध भाव से प्रभु जगन्नाथ के दर्शन कर सकें।

पौराणिक कथा: आत्मा की यात्रा
एक लोककथा के अनुसार, सतयुग में एक ऋषि, अत्रि, ने प्रभु विष्णु से प्रश्न किया कि मोक्ष कैसे प्राप्त हो सकता है जब मानव जीवन इतना दोषपूर्ण और चंचल है। तब विष्णु ने उत्तर दिया “जब तक जीव अपने भीतर के अंधकार को पहचान कर उसे पार नहीं करता, वह मेरे सच्चे स्वरूप को नहीं देख सकता।” यह सुनकर अत्रि ऋषि ने 22 वर्षों का कठोर तप किया और हर वर्ष एक दोष का परित्याग किया। 22वें वर्ष में उन्हें विष्णु के साक्षात दर्शन हुए — जो स्वयं ‘जगन्नाथ’ के रूप में अवतरित हुए।

इस कथा को ही ‘बैसी पहाचा’ के दर्शन का आध्यात्मिक आधार माना जाता है। हर सीढ़ी एक दोष को पार करने का प्रतीक है। जब श्रद्धालु इन सीढ़ियों पर पाँव रखते हैं, तो यह केवल शारीरिक प्रयास नहीं होता यह आत्मा की यात्रा होती है, जिसमें वह अपने भीतर झाँकने का प्रयास करता है।

प्रभु के पास पहुँचने से पहले आत्मपरीक्षण
जगन्नाथ मंदिर में एक विशेष परंपरा यह भी है कि अनेक श्रद्धालु इन सीढ़ियों को सिर से स्पर्श करते हैं या उन पर बैठकर ध्यान करते हैं। माना जाता है कि जैसे-जैसे आप एक-एक सीढ़ी चढ़ते हैं, वैसे-वैसे आपका मन सांसारिक विकारों से दूर होता जाता है। अंतिम सीढ़ी पर पहुँचते ही आत्मा शुद्ध हो जाती है और तब ही प्रभु के वास्तविक स्वरूप का अनुभव संभव होता है।

आधुनिक जीवन में बैसी पहाचा की प्रासंगिकता
आज के युग में जब मनुष्य दौड़ता है, थकता है और फिर भी आत्मिक शांति नहीं पा पाता जिससे बैसी पहाचा का संदेश अधिक प्रासंगिक हो जाता है। यह हमें बताता है कि आत्मिक ऊँचाई पाने के लिए बाहरी सफलता पर्याप्त नहीं, भीतर की अशुद्धियों को पहचानना और उन्हें त्यागना ज़रूरी है। बैसी पहाचा केवल मंदिर का एक स्थापत्य अंग नहीं है यह आत्मा की परीक्षा है, शुद्धि का मार्ग है और मोक्ष की कुंजी है। जब आप इन 22 सीढ़ियों को चढ़ते हैं, तो यह केवल एक स्थान की ओर नहीं, बल्कि स्वयं की ओर एक यात्रा है जहाँ अंत में आपका साक्षात्कार होता है उस परम पुरुष से, जो न केवल ‘जग के नाथ’ है, बल्कि आत्मा के भी स्वामी है।

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