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Adani @ Rath Yatra

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देवी बिमला: श्रीजगन्नाथ मंदिर की शक्ति, तंत्र और चेतना की अधिष्ठात्री

पुरी स्थित श्रीजगन्नाथ मंदिर को सामान्यत- भगवान विष्णु या उनके अवतार कृष्ण से जोड़ा जाता है। यहां जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की पूजा का भव्य आयोजन विश्व प्रसिद्ध है। परंतु इसी पवित्र स्थल पर एक ऐसी देवी का वास भी है, जिनका उल्लेख तंत्र और शक्ति साधना से जुड़ा हुआ है। देवी बिमला बहुत कम लोग जानते हैं कि श्रीजगन्नाथ मंदिर केवल वैष्णव परंपरा का केंद्र नहीं, बल्कि यहां की शाक्त परंपरा भी उतनी ही समृद्ध और शक्तिशाली है।

देवी बिमला: तंत्र की रहस्यमयी अधिष्ठात्री
श्रीजगन्नाथ मंदिर के दक्षिण-पश्चिम कोने में स्थित है देवी बिमला का मंदिर, जो मंदिर परिसर का एक अत्यंत प्राचीन और आध्यात्मिक रूप से शक्तिशाली स्थान माना जाता है। देवी विमला को तंत्र विद्या की देवी माना जाता है। वह न केवल सुरक्षा और आशीर्वाद की प्रतीक हैं, बल्कि मंदिर परिसर की ऊर्जा संतुलन में भी उनकी विशेष भूमिका है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भारत के 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ पुरी का पुरुषोत्तम शक्तिपीठ भी है, और इसकी अधिष्ठात्री देवी बिमला  हैं। मान्यता है कि जब सती के शरीर के टुकड़े भगवान शिव के तांडव के दौरान विभिन्न स्थानों पर गिरे थे, तब सती का नाभि भाग पुरी में गिरा था, और यहीं पर शक्तिपीठ का निर्माण हुआ। यही कारण है कि विमला देवी की उपस्थिति इस स्थल को शक्ति आराधना के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण बनाती है।

वैष्णव और शाक्त परंपरा का अद्भुत संगम
पुरी का श्रीजगन्नाथ मंदिर एक ऐसा दुर्लभ स्थल है जहाँ वैष्णव और शाक्त परंपराएँ एक-दूसरे में समाहित होती हैं। जहाँ एक ओर जगन्नाथ को भगवान विष्णु-कृष्ण के रूप में पूजा जाता है, वहीं दूसरी ओर देवी बिमला शक्ति की अधिष्ठात्री हैं। यह सामंजस्य भारतीय धार्मिक संस्कृति की विशालता और समावेशिता का प्रतीक है।

शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि जब तक जगन्नाथ प्रसाद (महाप्रसाद) को देवी बिमला  को अर्पित नहीं किया जाता, तब तक वह प्रसाद पूर्ण नहीं माना जाता। इसे ‘संस्कारी महाप्रसाद’ तभी कहा जाता है जब वह देवी बिमला को अर्पित हो चुका हो। यह दर्शाता है कि बिना शक्ति के, भक्ति अधूरी है। विष्णु के रूप में जगन्नाथ और शक्ति के रूप में देवी बिमला यह दैविक संतुलन पूजा की पूर्णता का प्रमाण है।

देवी बिमला और भैरव के रूप में जगन्नाथ
शक्तिपीठों में यह मान्यता है कि हर शक्ति के साथ एक भैरव की उपस्थिति होती है। पुरी में, देवी बिमला की भैरव रूप में जगन्नाथ स्वयं विराजमान हैं। यह संबंध यह सिद्ध करता है कि तंत्र साधना और शक्ति उपासना भी यहाँ उतनी ही प्रमुख है जितनी कि भक्तिमार्ग। यह स्थान केवल भक्ति, दर्शन और उत्सव का केंद्र नहीं, बल्कि तंत्र और रहस्य की भी गूढ़ स्थली है।

देवी बिमला का तांत्रिक महत्व
तंत्र साधना में देवी बिमला को विशेष स्थान प्राप्त है। साधक यहां विशेष रूप से नवरात्र, चतुर्दशी, और अष्टमी के अवसरों पर उपासना करते हैं। तांत्रिक ग्रंथों में उल्लेख है कि देवी विमला की आराधना साधक को सिद्धि, सुरक्षा और शुद्ध चेतना प्रदान करती है। उनके मंदिर का शांत वातावरण साधकों के लिए ध्यान और आंतरिक यात्रा का एक आदर्श स्थल माना जाता है।

एक मंदिर - अनेक आयाम
पुरी का श्रीजगन्नाथ मंदिर केवल एक वैष्णव धाम नहीं, बल्कि यह शक्ति, भक्ति और तंत्र का त्रिवेणी संगम है। देवी बिमला की उपस्थिति इस मंदिर को एक विशेष आध्यात्मिक गहराई देती है। वह नारी शक्ति की प्रतीक हैं, जो न केवल शक्ति प्रदान करती हैं, बल्कि चेतना को जागृत करती हैं। यह जानना आवश्यक है कि जिस स्थल पर लाखों लोग भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए आते हैं, वहाँ विमला देवी की मौन उपस्थिति उस आध्यात्मिक ऊर्जा को संतुलन और दिशा प्रदान करती है। उनकी आराधना, उनका महत्व और उनका स्थान, यह सब हमें भारतीय धर्म की जटिलता और समावेशिता की अद्भुत झलक है।

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